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Santmat
Acharya Santmat
SANT TULSI SAHAB - copy
SANT BABA DEVI SAHAB
MAHARSHI MENHI PARAMHANS JI MAHARAJ
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SANT SHAHI SWAMI JI MAHARAJ
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SWAMI HARINANDAN JI MAHARAJ
Gurusevi Bhagirath Baba
SANT SADGURU MAHARSHI MENHI PARAMHANS JI MAHARAJ WITH PUJYA SANTSEVI BABA,PUJYA SHAHI BABA ,PUJYA HARINANDAN BABA, PUJYA BHAGIRATH BABA

 

santmatPribhasha

(१) शांति स्थिरता वा निश्चलता को कहते हैं !
(२) शांति को जो प्राप्त कर लेते हैं, संत कहलाते हैं |
(३) संतो के मत वा धर्म को संतमत कहते है |
(४) शांति प्राप्त करने का प्रेरण मनुस्यों के ह्रदय में स्वाभाविक ही हैं | प्राचीन काल में ऋषियों इसी प्रेरण से प्रेरित होकर इसकी पूरी खोज की और इसकी प्राप्ति के विचारों को उपनिषदों में वर्णन किया | इन्हीं विचारों से मिलते हुऐ विचारोें को कबीर साहब और गुरु नानक साहब आदि संतों ने भी भारती और पंजाबी आदि भाषाओँ में सर्व-साधारण के उपकारार्थ वर्णन किया | इन विचारों को ही, संतमत कहते हैं; परन्तु संतमत की मूल भित्ति तो उपनिषद के वाक्यों को ही मानने पड़ते हैं; क्योंकि जिस ऊँचें ज्ञान का तथा उस ज्ञान के पद तक पहुँचाने के जिस विशेष साधन-नादानुसन्धान अर्थात सूरत-शब्द-योग का गौरव संतमत को हैं, वे तो अति प्राचीन काल की इसी भित्ति पर अंकित होकर जगमगा रहे हैं | भिन्न-भिन्न काल तथा देशों में संतो के प्रकट होने के कारण तथा इनके भिन्न - भिन्न नामो पर इनके अनुयायियों - द्वारा संतमत के भिन्न-भिन्न नामकरण होने के कारण संतों के मत में पृथकत्व ज्ञात होता हैं; परन्तु यदि मोटी और बाहरी बातों को तथा पन्थायी भावों को हटाकर विचारा जाय और संतों के मूल एवं सार विचारों को ग्रहण किया जाय, तो, यही सिद्ध होगा कि सब संतों का एक ही मत हैं |