Health

स्वस्थ रहने के कुछ सूत्र


गुरुसेवी स्वामी भगीरथ दासजी महाराज


एक उच्च कोटि के महापुरुष हो गये हैं, जिनको लोग ‘राजा भर्तृहरि’ नाम से जानते हैं, इन्होंने संसार के लोगों से कहा


यावत्स्वस्थमिदं शरीरं रुजं यावज्जरा दूरितो ।
यावच्चेन्द्रि शक्ति प्रतिहता यावज्क्षयो नायुषः ।।
आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यो प्रयत्नो महान् ।
संदीप्ते भवने तू कूप खननं प्रत्युद्यम् कीदृशः ।।


जबतक शरीर स्वस्थ है, जबतक शरीर में रोग नहीं हुआ है, जबतक बुढ़ापावस्था नहीं आयी है, जबतक इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई है, तबतक हे विद्वान्! महान प्रयत्न के साथ आत्मोन्नति के कार्य में लग जाओ, अन्यथा घर में आग लगने पर कूप खोदने के समान होगा।
पूज्य गुरुदेव महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की वाणी हैµफ्स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन रहता है, स्वस्थ मन से ईश्वरोपासना होती है।य्
स्वस्थ शरीर में सांसारिक एवं पारमार्थिक दोनों सुखों को प्राप्त किया जा सकता है। अस्वस्थ शरीर में इन दोनों सुखों से वंचित रहेंगे। इसलिए स्वस्थ रहने का प्रयास अवश्य करते रहना चाहिए। कहावत हैµ‘सौ दवा एक हवा।’ हमारे पूज्य गुरुदेव महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज कभी-कभी प्रातःकाल टहलते समय कहा करते थेµफ्जो गुण है खुली हवा में, सो गुण नहीं दवाई में।य् स्वस्थ रहने के लिए प्रातःकाल टहलने का प्रयास जरूर करना चाहिए।
भोजन में अध्कि मात्रा में तेल, घी, मसाला और लाल मिर्च आदि का व्यवहार बहुत कम करना चाहिए। बिल्कुल सादा भोजन लेना चाहिए। भोजन करने के समय शांत भाव से भोजन की सामग्री को चबा-चबाकर खाना चाहिए। अध्कि चबाने से मुँह में लार की मात्रा अध्कि बनती है और वह भोजन को पचाने का काम करता है।

भोजन करने के समय बातचीत करने से लार कम मात्रा में बनता है, वह भोजन जल्द नहीं पचता है। हमलोग जो कुछ भी भोजन करते हैं, वे पेट में जाकर पचता है और सड़ता भी है। दोनों का परिणाम दो तरह का हो जाता है। भोजन पचने से शरीर में रस, रक्त, मांस, मेद, मज्जा, अस्थि और वीर्य बनता है। यह शरीर को स्वस्थ बनाये रखने में सहायक होता है और भोजन के सड़ने से पेट में गैस बनता है। उसी गैस के चलते अनेक प्रकार के भयानक रोग होते हैं। जैसेµघुटनों का दर्द, वबासीर, भगन्दर, गठिया, यहाँ तक कि कैंसर जैसे असाध्य रोग भी होता है।
अब विचारना है कि पेट में गैस कैसे बनता है? भोजन करने के समय या भोजन करने के तुरंत बाद पानी पीने से जठराग्नि मंद पड़ जाती है, जिसके चलते पेट में गैस बनता है। भोजन के तुरंत बाद पानी पीने को विष कहा गया है। वागभट्टजी महाराज का कहना है कि ‘भोजन अन्ते विषं वारि।’ भोजन के अंत में पानी विष का काम करता है। एक विष तुरंत मारनेवाला होता है और दूसरा विष ध्ीरे-ध्ीरे मरने की स्थिति में लानेवाला होता है। अब विचारना है कि भोजन करने के कितनी देर बाद पानी पीना चाहिए।


वागभट्टजी महाराज का कहना है कि कम-से-कम डेढ़ घंटे बाद पानी पीना चाहिए, और वह पानी भी सीप-सीप कर मतलब थोड़ा- थोड़ा करके पीना चाहिए, जिससे पानी के साथ पेट में अध्कि मात्रा में लार चला जाए।


भोजन करने के पहले पाँव धेने तथा भोजन के बाद वज्रासन से कुछ देर बैठने से जठराग्नि तेज हो जाती है और पेट में गैस भी नहीं बनता है।
भोजन के बाद बायें करवट लेटने से दायाँ स्वर चलने लगता है, इससे खाया हुआ भोजन जल्द पचता है, इसके साथ-साथ बायाँ करवट सोने से बुरा स्वप्न भी नहीं होता है।
एक बात सब किन्हीं को याद रखनी चाहिए। संध्या काल में भोजन नहीं करना चाहिए। इस समय भोजन करने से रोग की

उत्पत्ति होती है। मैथुन नहीं करना चाहिए, मैथुन करने से अंग-प्रत्यंगादि की विकृति होती है। संध्याकाल में सोना नहीं चाहिए। इस समय सोने से दरिद्रता आती है। संध्याकाल में अध्ययन नहीं करना चाहिए। इस समय अध्ययन करने से आयु का ”ास होता है। संध्याकाल में मार्ग नहीं चलना चाहिए। इस समय मार्ग पर चलने से चोर आदि का भय रहता है। ‘भावप्रकाश’ में लिखा है


एतानि प×च कर्माणि सन्ध्यायां वर्जयेद् बुध्ः ।
आहारं मैथुनं निद्रा सन्पाठं गतिमध्वनि ।।
भोजनाज्जायते व्याधि् मैथुनाद्नर्भवैकृतिः ।
निद्रया निःस्वता पाठादायुर्हानिर्गते भयम् ।।


स्वस्थ रहने के लिए कुछ पथ्य-परहेज की बातों की जानकारी भी रखनी चाहिए। जैसे रात के समय में पफलों का रस, अध्कि मात्रा में तेल-घी का बनाया हुआ चीज, दही, सत्तू या मट्ठा नहीं खाना-पीना चाहिए और भोजन के तुरंत बाद बहुत तेजी के साथ नहीं दौड़ना चाहिएऋ लेकिन रात्रि-भोजन के बाद ध्ीरे-ध्ीरे थोड़ा जरूर टहलना चाहिए। रात्रि-भोजन के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए। तुरंत सोने से पेट की गड़बड़ी होती है।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रातःकाल खुली हवा में अवश्य टहलना चाहिए और अपने शरीर के तासीर के अनुसार कुछ व्यायाम और प्राणायाम भी करना चाहिए। प्राणायाम करने के लिए इसके जो अच्छे जानकार हैं, उनसे जानकारी लेकर ही करना चाहिए।
स्वास्थ्य को अच्छी हालत में रखने के लिए तेज ध्ूप में चलने के तुरंत बाद या शारीरिक मेहनत करने के तुरंत बाद या शौच से आने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए, इससे भी पेट की गड़बड़ी होती है।
स्वास्थ्य को अच्छी हालत में रखनेवालों को कभी भी घी और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर नहीं खाना चाहिए। कटहल की सब्जी या पक्का कटहल के साथ दूध्, दही नहीं खाना चाहिए। पक्का कटहल खाने के बाद कभी भी कत्था, चूना, सुपारी, मिश्रित पान नहीं खाना चाहिए।
दूध् के साथ दही और इसके साथ मछली कभी भी नहीं खाना चाहिए। इस तरह का मिश्रित भोजन से खून की गड़बड़ी होती है और शरीर में भयंकर रोग हो जाता है।
किस महीने में क्या-क्या निषेध् है, इस संबंध् में किसी कवि का कहना है


चैते गुड़ बैशाखे तेल, जेठे पंथ असाढ़े बेल ।
सावन साग न भादो दही, क्वार करेला न कातिक मही ।।
अगहन जीरा पूसे ध्ना, माघे मिसरी पफागुन चना ।
ई बारह जो देय बचाय, वहि घर बैद कबौं न जाय ।।


अर्थात् यदि व्यक्ति चैत्रा में गुड़, वैशाख में तेल, ज्येष्ठ की ध्ूप में यात्रा, आषाढ़ में बेल, सावन में साग, भाद्रपद में दही, आश्विन में करेला, कार्तिक में मट्ठा, अगहन में जीरा, पौष में ध्निया, माघ में मिसरी और पफाल्गुन में चना सेवन करे, तो ये वस्तुएँ स्वास्थ्य के लिए कष्टकारक होती हैं। जिस घर में इनसे बचा जाता है, उस घर में वैद्य कभी नहीं आताऋ क्योंकि लोग स्वस्थ बने रहते हैं।
इसके साथ ही शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अपान वायु के वेग को, मल-मूत्रा के वेग को, छींक और जम्हाई के वेग को नहीं रोकना चाहिए। इसके रोकने से स्वास्थ्य में गड़बड़ी होती है।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए यह ख्याल रखना चाहिए कि भोजन के बनाने के समय भोजन में सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श जरूर हो। इसके अभाव में बनाया गया भोजन स्वास्थ्यव(र्क नहीं होता है।
एल्युमीनियम धतु से बनाये गये बर्तन में भोजन पकाने, रखने और खाने से बहुत प्रकार की बीमारियाँ होती है।
एल्युमीनियम धतु का बर्तन सबसे पहले अंग्रेजों ने जेल में कैद किये गये भारतवासियों के लिए बनाया था। इस ख्याल से बनाया था कि भारतवासी इस बर्तन का बनाया हुआ भोजन करेगा, तो जल्द मरने की स्थिति में आकर मर जाएगा। इसलिए इस धतु स बने चीजों को उपयोग में नहीं लाना चाहिए।
शरीर को स्वस्थ रखने के ख्याल से अपने सिर को उत्तर दिशा में रखकर नहीं सोना चाहिए। सिर को उत्तर दिशा में रखकर सोने से कर्क रेखा का प्रभाव सीध्े छाती और मस्तक पर पड़ता है, जिससे हृदय एवं मस्तिष्क का रोग होता है।

  1. कैंसर रोग की रोकथाम की दवा – देशी काली गाय के दूध् का दही का मट्ठा 250ग्राम, लगभग 50ग्राम श्याम तुलसी के पत्ते को पीसकर खाली पेट सुबह-शाम पीने से बहुत लाभ होता है।
  2. स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए– शंखपुष्पी के एक चम्मच चूर्ण को देशी गाय के घी में मिलाकर खाली पेट में खाने से स्मरणशक्ति बढ़ती है। गाय के घी के अभाव में शहद के साथ खाने से भी स्मरणशक्ति बढ़ती है।
  3. पढ़ने की रुचि बढ़ाने के लिए– जौ की सत्तू में थोड़ा-सा पीपर का चूर्ण और थोड़ा-सा शहद को मिलाकर खाली पेट में खाने से पढ़ने की रुचि बढ़ जाती है।
  4. शुक्रक्षय की रोकथाम हेतु– एक चम्मच आँवला चूर्ण में उसी मात्रा से शहद मिलाकर प्रातःकाल खाली पेट ध्ीरे-ध्ीरे चाटने से शुक्र गाढ़ा हो जाता है। शुक्र का निकलना बंद हो जाता है।
  5. साइटिका की दवा-हरसिंगार के पौध्े की पत्ती का काढ़ा सुबह शाम खाली पेट पीने से साइटिका में बहुत लाभ होता है।
  6. सफेद दाग को मिटाने हेतु दवा= 1. श्याम तुलसी के पत्ते के रस को लगाने से लाभ होता है। परहेज में दूध् के साथ मूली नहीं खायें।
    1. गुलचीन पौध्े की छाल का काढ़ा पीने से लाभ होता है। काढ़ा बनाने के लिए एक मिट्टी के बर्तन में दस सेर पानी में आध सेर गुलचीन गाछ की छाल देकर गोयठे की आग पर पानी को ध्ीरे- ध्ीरे जलाएँ। जब पानी जलकर एक सेर के लगभग रह जाए, तब छाल को मथकर उससे सीठी निकाल पफेंकें। पिफर उस पानी को जलाकर आध सेर के लगभग करें। इस तरह बने काढ़ा को ठंढा करके किसी बोतल में रख लें और सबेरे खाली पेट आध चम्मच पिया करें। ऐसा करने से कुछ दिनों में खून सापफ हो जाता है।